आश्रमों में मौतों के बाद भी नहीं सुधरे हालात. एक साल में 8 बच्चों ने तोड़ा दम. विधानसभा में गूंजा आश्रमों में मौतों का मामला. साल के आख़िरी सप्ताह में 7 पोर्टाकेबिन अधीक्षकों की हुई छुट्टी। नए अधीक्षक आज लेंगे प्रभार. जेवियर कुजूर की मौत पर तात्कालीन सहायक आयुक्त मसराम ने कहा था पढ़ना नहीं चाहते इसीलिए करते हैं आत्महत्या. अभी दंतेवाड़ा में हैं बतौर सहायक आयुक्त हैं पदस्थ।

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बीजापुर- बीजापुर जिले में साल 2024 में अलग-अलग आश्रम- छात्रावास में दस बच्चों की मौत हुई है। 8 बच्चों की मौत बीमारी, एक की मौत का कारण आत्महत्या तो वही एक बच्ची की मौत जलने से हुई थी। एक साथ इतने बच्चों की मौत से आश्रम-छात्रावास की व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इन सवालो के बाद कई दौर की जांच भी सालभर तक होती रही लेकिन बावजूद जांच बेनतीजा ही साबित हुई। दरअसल आश्रम छात्रावास में बच्चों को मिलने वाली सुविधा के साथ ही खाने-पाने की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे है। मौत के प्रमुख कारणों में बच्चों का बीमार होना है। उल्टी, दस्त और फूड प्वाइजनिंग जैसे कारणों से बच्चों की मौत हुई है। इससे स्पष्ट होता है कि लापरवाही तो हुई है। अगर बच्चों को बेहतर सुविधा के साथ खानपान की अच्छी गुणवत्ता मिलती तो शायद वे सलामत होते।

पोटाकेबिन में लगी आग से बच्ची की हो गई थी मौत

आवापल्ली के पोटाकेबिन में 6 मार्च को आग लगने से एक बच्ची की मौत हो गई थी। इस मामले के बाद पोटाकेबिन की सुरक्षा पर सवाल खड़े हुए थे। दरअसल पोटाकेबिन में आग लगने की घटनाओं से निपटने के कोई इंतजाम नहीं हैं। उस वक्त इस संबंध में आदेश भी जारी किए गए लेकिन आज भी पोटाकेबिन का संचालन लापरवाही के साथ हो रहा है।

पोटाकेबिन और छात्रावास का अधीक्षक बनने लगती है बोली।

जिले में विपक्षी पार्टियां हमेशा आरोप लगाती रही हैं कि पोटाकेबिन और आश्रम-छात्रावास का अधीक्षक बनने के लिए जिले में बोली लगती है। 4 से 5 लाख रुपए सालाना तक का रेट तय है। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है आश्रम- छात्रावास में बच्चों का कितना ख्याल रखा जाता है। उनकी सेहत जिम्मेदारों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। बच्चों की सेहस से खिलवाड़ का सिलसिला उन्हें परोसे जाने वाले घटिया खाने से होता है। आए दिन आश्रम-छात्रावासों से ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जब बच्चों को गुणवत्ताहीन खाना परोसा जाता है।



ट्राइबल आश्रम 137 जिले में,51 छात्रावास 
34 आवासीय पोटाकेबिन विद्यालय जिले में
15000 बच्चे आश्रम- छात्रावास में
12000 से अधिक बच्चे पोटाकेबिन में

जिले के इन आश्रम- छात्रावास में बच्चों की मौत हुई

■ 27 फरवरी जेवियर कुजूर 13 वर्ष 7वी का छात्र- प्री. मैट्रिक बालक छात्रावास चेरागंगी (फांसी लगाकर आत्महत्या)
■ 6 मार्च लिप्सा. 04 वर्ष आवासीय बालिका पोटाकेबिन तिम्गापुर (पोटाकेबिन में आग लगने की वजह से जलकर मौत हो गई।
■ 19 अप्रैल रजनी यालम 20 वर्ष छात्रा की ईलाज के दौरान मौत हुई तारलागुड़ा की रहने वाली थी।
■ 12 जुलाई दीक्षिता रेगा उम्र- 09 वर्ष कक्षा चौथी आवासीय बालिका पोटाकेबिन तारलागुड़ा (मलेरिया से मौत)
■ 14 जुलाई वेदिका जव्वा 4 वर्ष कभा तीसरी आवासीय बालिका पोटाकेबिन संगमपली (मलेरिया से मौत)

■ 08 अगस्त अनिता कुरसम 04 वर्ष कक्षा-दूसरी 6 कन्या आश्रम बेदरे (बुखार और उल्टी दस्त)

■ 27 सितंबर राकेश पुनम 08 वर्ष कक्षा पहली - आवासीय विद्यालय दुगईगुडा (उल्टी दस्त से)

■10 दिसंबर शिवानी उम्र माता रुकमणी कन्या आवासीय आश्रम धनोरा (फूड पाईजनिंग से मौत)

■ 11 दिसंबर विमला कवासी कक्षा- 10वीं 15वर्ष आवासीय कन्या पोटाकेबिन नेमेड (सिक लिंग पेन)

■ 16 दिसंबर टंकेश्वर नाग कक्षा चौथी आवासीय बालक स्कूल भटवाड़ा (मलेरिया से मौत)

अधिकारियों की गंभीरता को इस बायान से समझा जा सकता है कि बच्चे पढ़ाई करने के डर की वजह से आत्महत्या करते हैं। तात्कालीन सहायक आयुक्त आदिवासी विकास शाखा बीजापुर एस के मसराम ने चेरामांगी में जेवियर कुजूर की मौत के बाद ये बेतुका और गैर जिम्मेदाराना बयान दिया था। बयान से स्पष्ट है कि आदिवासी इलाकों में पदस्थ अधिकारी कितने गंभीर हैं मासूमों के स्वास्थ्य और जीवन को लेकर। 
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